Loan Write-Offs: 10 साल में बैंकों ने गवाए 12 लाख करोड़ रुपये | जानिए पूरी जानकारी

Loan Write-Offs: 10 साल में बैंकों ने गवाए 12 लाख करोड़ रुपये | जानिए पूरी जानकारी

Loan Write-Offs: भारत में बैंकिंग क्षेत्र को लेकर एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। पिछले 10 वर्षों में भारतीय बैंकों ने करीब 12 लाख करोड़ रुपये के लोन को write-off यानी बट्टे खाते में डाल दिया है। इस लेख में हम जानेंगे कि लोन write-offs क्या होते हैं, इसका बैंकों और ग्राहकों पर क्या असर पड़ता है, और इस समस्या के समाधान के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।

Loan Write-Offs क्या है?

लोन write-off का मतलब होता है कि बैंक किसी दिए गए कर्ज को वसूलने में असमर्थ हो जाता है और इसे अपनी बैलेंस शीट से हटा देता है। इसका यह मतलब नहीं है कि कर्जदार को लोन चुकाने की जरूरत नहीं है, बल्कि बैंक इसे अपने रिकॉर्ड से निकाल देता है। वसूली का प्रयास जारी रहता है।

श्रेणी विवरण
Write-Off का कारण कर्जदारों की भुगतान क्षमता में कमी
वसूली प्रक्रिया कर्जदाताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई
प्रभाव बैंकों की वित्तीय स्थिति कमजोर

12 लाख करोड़ रुपये की हानि कैसे हुई?

2014 से 2023 तक का समय भारतीय बैंकों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा। इस दौरान बैंकों ने भारी मात्रा में कर्ज write-off किया। इसमें मुख्यतः सरकारी और प्राइवेट बैंकों का योगदान रहा।

प्रमुख कारण

  1. बड़ी कंपनियों द्वारा कर्ज चुकाने में विफलता:
    • कई बड़े उद्योगपतियों ने बैंकों से भारी मात्रा में लोन लिया लेकिन इसे वापस नहीं चुकाया।
  2. गैरनिष्पादित परिसंपत्ति (NPA) में वृद्धि:
    • एनपीए बढ़ने की वजह से बैंकों को मजबूरी में लोन write-off करना पड़ा।
  3. आर्थिक मंदी और COVID-19 का प्रभाव:
    • आर्थिक गतिविधियों में गिरावट और महामारी के कारण कर्जदारों की भुगतान क्षमता कम हो गई।

आंकड़ों में जानकारी

वर्ष लोन Write-Off (करोड़ रुपये में)
2014-15 52,000
2018-19 2,36,265
2022-23 2,09,144
कुल (10 साल) 12,00,000

इसका बैंकों और ग्राहकों पर असर

लोन write-offs का असर न केवल बैंकों की वित्तीय सेहत पर पड़ता है, बल्कि इसका असर आम ग्राहकों और देश की अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिलता है।

  1. बैंकों पर प्रभाव:
  • बैंकों के पास नए लोन देने की क्षमता घट जाती है।
  • ब्याज दरों में वृद्धि का खतरा बढ़ जाता है।
  1. ग्राहकों पर प्रभाव:
  • आम ग्राहकों के लिए लोन महंगे हो जाते हैं।
  • बैंक सेवा शुल्क में वृद्धि हो सकती है।
  1. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
  • बैंकों की कमजोर स्थिति से आर्थिक विकास धीमा हो सकता है।
  • विदेशी निवेशकों का भरोसा कम हो सकता है।

समस्या का समाधान क्या हो सकता है?

  1. सख्त वसूली प्रक्रिया:
  • कर्जदारों पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।
  1. क्रेडिट नीति में सुधार:
  • लोन देने से पहले कर्जदार की वित्तीय स्थिति की गहन जांच हो।
  1. बैंकों के लिए बेहतर निगरानी:
  • बैंकों की एनपीए प्रबंधन प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाया जाए।
  1. Bad Bank की स्थापना:
  • गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को संभालने के लिए bad bank की स्थापना हो। इससे बैंकों का ध्यान अन्य गतिविधियों पर केंद्रित रहेगा।

सरकार और RBI का दृष्टिकोण

सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इस समस्या को हल करने के लिए कई कदम उठाए हैं।

  1. इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (IBC):
    • IBC के जरिए बड़े डिफॉल्टर्स के खिलाफ तेजी से कार्रवाई की जाती है।
  2. NPAs की नियमित मॉनिटरिंग:
    • बैंकों को समय-समय पर अपनी एनपीए स्थिति रिपोर्ट करनी होती है।
  3. डिजिटल ट्रैकिंग:
    • कर्जदारों की डिजिटल निगरानी के जरिए धोखाधड़ी रोकने की कोशिश की जा रही है।

आपकी भूमिका क्या है?

  • लोन लेने से पहले अपनी चुकाने की क्षमता का सही आकलन करें।
  • डिजिटल बैंकिंग का उपयोग करें और अपने क्रेडिट स्कोर को बनाए रखें।
  • किसी प्रकार की वित्तीय समस्या हो तो बैंक से संपर्क करें।

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अस्वीकरण : हम गारंटी नहीं दे सकते कि इस पोस्ट पर दी गई जानकारी 100% सही है।

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